“सर मैंने तो अम्मी से कहके आपका फ़ोन नंबर हाथ पे लिखवा लिया है , जब वो अब्बू और अम्मी को उठा ले जाएँगे और मैं यहाँ रह गया तो आपको फ़ोन करूँगा, आप मुझे लेने आयेंगे ना” ऐसा बोलकर वो मुझसे लिपटकर रोने लगा, मैं बस उसके आंसू देख रहा था ,मानो मेरा पूरा जिस्म सुन्न हो गया हो।
ये क़ैसर था, 8 साल की उम्र का ये बच्चा हमारे लर्निंग सेंटर “फ़ातिमा अल फ़िहरी” में नूह में पढ़ता है। उसके माँ-बाप म्यांमार से भाग कर हिन्दुस्ताँ आये । कई बार उन्होंने अपने होने वाले ज़ुल्म के क़िस्से सुनाए , कैसे गाँव के लोगो को मारा गया, उनकी औरतों के साथ ज़्यादती हुई और किन-किन तकलीफ़ों से गुज़रकर वो यहाँ आयें। आख़िरकार नूह में उनको आसरा मिला जो दिल्ली से 70 कि.मी. दूर और हरियाणा राज्य में है।
पिछले 2 सालों से Miles2Smile उनके साथ काम कर रही है । जली हुई बस्तियों को वापस आबाद करने के अलावा, हमने यहाँ 5 शिक्षा केंद्र बनाये ताकि ये तालीम से महरूम ना रहे, एक मेडिकल कैम्प भी बनाया ताकि उनके। सेहत के लिए भी काम किया जा सके।। इन 2 सालों में बीसियों बार वहाँ जाना हुआ , पर आज कुछ अजीब सा दिन था । एक अजीब सा सन्नाटा, चारों तरफ़ बस ख़ौफ़ और बेचैनी।
पिछले कुछ दिनों से सरकार इनको पकड़कर Holding centres में डाल रही है । पहले जम्मू में इनको पकड़कर हीरानगर होल्डींग कैम्प में डाला गया। हीरानगर होल्डिंग कैम्प में लगभग 271 रोहिंग्या रखे गये हैं जिसमे 144 औरतें और बच्चे हैं। जब इन्होंने होल्डिंग सेंटर के बदइंतज़ामी के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल किया तो इनपर ना सिर्फ़ लाठी चार्ज हुआ बल्कि आंसू गैस के गोले की वजह से 5 महीने की उम्मे हबीबा ने दम तोड़ दिया। हद तो तब हो गई जब उम्मे हबीबा को दफ़्न करते वक़्त उसके माँ बाप को रस्सियों से बांध कर लाया गया । इस वाक्ये ने सारे रोहिंग्या में डर पैदा कर दिया। अभी वो इस डर से निकले भी नहीं थें के कल रात लगभग 2 बजे मथुरा, अलीगढ़, हापुड़, ग़ाज़ियाबाद, मेरठ और सहारनपुर से लगभग 74 रोहिंग्या को UP ATS ने गिरफ़्तार कर लिया। इनमें 19 औरतें और बच्चे भी हैं।
इस वाक़ये ने तो लगभग आग में घी का काम किया और नूह के पूरे कैम्प में अफ़रा तफ़री का माहौल हो गया। लोग डर से अपनी चीज़ें बेचने लगे। मैं कैम्प में अहमद के घर गया । अहमद एक सेटलमेंट का ज़िम्मेदार है ( ज़िम्मेदार एक लोकल लीडर की तरह होता है जो लोकल पुलिस से coordinate करता है )। उसकी बेटी की शादी मथुरा में है और वो अपनी बेटी से मिलने मथुरा गया था जब पुलिस ने उसे भी गिरफ़्तार कर लिया। उसकी बेटी कैम्प में ही छूठ गई। उसको वापस लाने जब उसका भाई नूह से गया तो लौटते वक़्त उनका एक्सीडेंट हो गया। मैं जब वहाँ गया तो सब रो रहे थें। बच्चे को हॉस्पिटल भेजा और सबको भरोसा दिलाया के जल्द ही सब कुछ ठीक होगा। पर सब ठीक होना इतना भी आसान नहीं है ।
खूनी इतिहास
रोहिंग्या पे ज़ुल्म की कहानी नई नहीं है। बर्मा की आज़ादी के बाद से ही (1948) रोहिंग्या अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं। 1962 के बग़ावत के बाद से म्यांमार एक मिलिट्री स्टेट में तब्दील हो गया जहां रोहिंग्या को नेशनल आइडेंटिटी में एक ख़तरे की तरह देखा जाने लगा । फिर शुरू हुई बर्बरता, बलात्कार और ज़ुल्म की दास्ताँ। सरकार ने ना सिर्फ़ रोहिंग्या के सारे सोशल और पोलिटिकल ऑर्गेनाइज़ेशनस को बैन कर दिया बल्कि उनके सारे प्राइवेट बिज़नेस को गवर्नमेंट बिज़नेस में तब्दील कर दिया। 1982 में म्यांमार सरकार citizenship act लेकर आयी और रोहिंग्या को नागरिकता देने से इनकार कर दिया। 1991 और 1992 में लगभग 250,000 रोहिंग्या ने बांग्लादेश भागने की कोशिश की।
अक्तूबर 2016 से जनवरी 2017 के बीच म्यांमार आर्मी ने अरकान में रोहिंग्यान का genocide शुरू किया । एक स्टडी के मुताबिक़ 25000 से ज़्यादा लोगों का क़त्ल हुआ , 18,000 औरतों और बच्चियों के साथ रेप हुआ, 1,16,000 रोहिंग्यन को पीटा गया, 36,000 रोहिंग्यान को जलती आग में फेंक कर मारने की कोशिश की गई और सैकड़ों गाँव पूरी तरह जला दिये गये। इन हालातों में लगभग 700,000 रोहिंग्यन ने भागकर बांग्लादेश, हिंदुस्तान, थाईलैण्ड, नेपाल, मलेशिया, सउदी अरब में शरण ली। ये वियतनाम की जंग के बाद दुनिया का सबसे बड़ा exodus है ।
हिंदुस्तान में रोहिंग्यन
हिंदुस्तान में सिर्फ़ 40,000 रोहिंग्यन हैं जिसमे ज़्यादातर जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली और नूह में हैं । सबसे ज़्यादा उत्पीड़न के बाद भी ये हिंदुस्तान में एक कलेक्टिव सिम्प्थी बटोरने में नाकाम रहे हैं। आज ये राष्ट्रीय सुरक्षा में एक ख़तरे के रूप में देखे जाते हैं। पिछले कुछ सालों में इनकी बस्तियों में आग लगना आम बात है । दिल्ली में जून 2021 और नूह में दिसंबर 2021 में आग लगने की बड़ी घटनाएँ हुईं जिसमे 100 से ज़्यादा घर जलकर ख़ाक हो जाये। इन मौक़ों पर Miles2Smile ने रिलीफ का काफ़ी काम किया। हमने ना सिर्फ़ जले हुए घर बनाये बल्कि सेहत और तालीम के लिए भी सेंटर्स भी बनाये।
हमने पाया कि रोहिंग्यन इस मुल्क में रहने वाले सारे रिफ़्यूजीस ( पाक़िस्तानी और बाँग्लादेशी हिंदू, तिब्बत के बौद्ध ) में सबसे ज़्यादा निगरानी में रहते हैं। सरकार के पास सिर्फ़ इनके बायोमेट्रिक्स ही नहीं बल्कि परिवार के पूरे सदस्यों का पूरा डेटा रहता है। हर कैंप के ज़िम्मेदार हर महीने पुलिस से मिलते हैं और अपने अपने कैम्प का पूरा डेटा ( नयी पैदाइश, मौत, पलायन) शेयर करते हैं। देर रात पुलिस का इनके कैम्प्स को घेरना और सबकी id वेरीफाई करना एक आम बात है। नूह में इनका कैम्प CID ऑफिस के आस पास ही है और इनकी सारी गतिविधियों पर सीआईडी की हमेशा नज़र रहती है । इसके बावजूद इनकी गिरफ़्तारी होने पर डर लगना जायज़ है।
रोहिंग्यन रिफ्यूजी , हिंदुस्तान और अंतररास्ट्रीय संधि
इंडिया United Nations Sustainable Development Goals के लिए प्रतिबद्ध है और हमने Universal Deceleration of Human Rights पे हस्ताक्षर भी किए हैं जो मानता है के उच्च स्तर का mental और Physical हेल्थ सबका अधिकार है । पर इंडिया ने 1951 के Refugee Convention और 1967 के protocol पे हस्ताक्षर नहीं किए हैं । हमारे पास रिफ़्यूजीस के लिये एक बेहतरीन legal और policy फ्रेमवर्क भी नहीं है। ऐसे में रोहिंग्यन रिफ़्यूजीस को लेकर बहुत सारी बातें अधर में है।
आगे का रास्ता
आज की तारीख़ में रोहिंग्यन पूरी दुनिया के सबसे उत्पीड़ित समुदाय है । ये तालीम और हेल्थ के इंडिकेटर्स पे सबसे पिछड़े भी हैं। इनके ज़ुल्म की जो कहानी 1948 से शुरू हुई वो आज भी जारी है । इनकी कई जनरेशन ये पूछते हुए मर गई के उनका मुल्क कौन है। आज ज़रूरत है के हम इनकी तकलीफ़ को समझे और इंसानियत के नाते वो हमदर्दी रखें जिनके वो हक़दार हैं।आप भले ही सोशल मीडिया पे बहस करें के रोहिंग्यन सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं या नहीं पर सच्चाई ये है जब आप क़ैसर जैसे कई बच्चों से मिलेंगे और उनसे बातें करेंगे तो ख़ुद से ये सवाल ज़रूर करेंगे“ एक इंसान इस ज़मीन पर ग़ैर क़ानूनी कैसे हो सकता है”